जानें, किस धातु पर कितने दिन जीवित रहता है कोरोना
May 29, 2020 at 03:42PM
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बहुत तेजी फैल रहा है। लाख कोशिशों के बाद भी दुनिया इस बीमारी से पीछा नहीं छुड़ा पाई है। हालांकि इस दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। हम अपने घर में और अपने दैनिक जीवन में जिन सामानों का उपयोग करते हैं। उन पर कोरोना की लाइफ कुछ घंटे से लेकर कई दिन तक की हो सकती है। इसलिए आपको यह बात जरूर जाननी चाहिए कि किस मैटल यानी धातु पर कोरोना कितनी देर जीवित रहता है। ताकि घर में उपयोग होनेवाली हर चीज को आप वक्त पर सेनिटाइज करें और अपने साथ आपने परिवार को भी सुरक्षित रख पाएं... कई स्टडीज में यह बात सामने आ चुकी है कि प्लास्टिक पर कोरोना वायरस 3 दिन तक जीवित रह सकता है। जबकि घरों में जिस स्टील से बने बर्तनों, ग्रिल और फर्निचर आदि का उपयोग होता है, उस पर भी कोरोना की लाइफ 3 दिन ही होती है। अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि घर के फर्श, लकड़ी के फर्नीचर और कांच की वस्तुओं पर यह वायरस कितने समय तक रहता है? आइए, यहां इसी बारे में जानते हैं... फर्श पर कोरोना की लाइफ -फर्श या जमीन पर कोरोना का जीवन औसतन 9 घंटे का होता है। बाकि यह इस बात पर निर्भर कर सकता है कि फर्श किस तरह का है। यानी फर्श का सरफेस मिट्टी है, मार्बल है, वुड है या ग्लास है। लेकिन अगर मिट्टी और टाइल्स की बात करें तो कोरोना इन पर 9 से 10 घंटे के अंतर प्रभावहीन हो जाता है। किचन और कोरोना का जीवन -जैसा कि ऊपर बात हो चुकी है कि प्लास्टिक पर कोरोना की लाइफ करीब 3 दिन होती है। यानी बाहर से हम रसोई से संबंधित जो भी सामान लेकर आते हैं, उससे कोरोना वायरस के संक्रमण का डर आमतौर रहता है। यही वजह है कि आप और हम पिछले लगभग 3 महीनों से हर चीज को सेनिटाइज करने के बाद ही उपयोग कर रहे हैं। पिछले दिनों यूनाइटेड स्टेट के नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टिट्यूट, सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की तरफ से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस से दूषित सतह से यह वायरस फोमाइट ट्रांसमिशन के जरिए भी लोगों को प्रभावित कर सकता है। इसे आप अप्रत्यक्ष संपर्क की तरह समझ सकते हैं। अगर आप किसी भी सामान को छूने के बाद अपने मुंह, नाक या आंखों को टच कर लेते हैं तो यह कोरोना के संक्रमण की वजह बन सकता है। यहां जानें फोमाइट ट्रांसमिशन के बारे में -अगर कोरोना पीड़ित कोई व्यक्ति खांसते या छींकते समय अपने हाथों से अपने मुंह को कवर करता है तो उस दौरान उसके हाथ पर इस दौरान निकले हुए ड्रॉपलेट्स आ जाते हैं। ऐसे में वह अपने हाथों को तो धुलकर साफ कर लेता है लेकिन कुछ ड्रॉपलेट्स आस-पास के सरफेस पर गिर जाती हैं। इस दौरान अगर ये ड्रॉपलेट्स किसी अन्य व्यक्ति के संपर्क में आती हैं तो उसे संक्रमण होने का खतरा कहीं अधिक होता है। -लेकिन कुछ ही घंटों बाद इन ड्रॉपलेट्स का प्रभाव धीमा होने लगता है और एक तय समय बाद खत्म हो जाता है। तो जिस समय इस वायरस की ड्रॉपलेट्स का असर कम हो चुका होता है, उस स्थिति में ये शुरुआती स्तर जितनी खतरनाक नहीं रह जाती हैं। हां लेकिन यहां एक बार फिर यह बात निर्भर करती है कि सरफेस किस चीज से बना है। अलग-अलग धातु पर कोरोना की लाइफ -तांबा यानी कॉपर एक ऐसी धातु है, जिस पर कोरोना वायरस सबसे कम सय तक जीवित रहता है। यह समय है 4 घंटे। यानी अगर किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा कॉपर से बनी चीजों पर कोरोना फैल जाता है तो मात्र 4 घंटे बाद ही वहां गिरी वायरस के ड्रॉपलेट्स प्रभावहीन हो जाती हैं। -दूसरा नंबर आता है एल्युमीनियम का। एल्युमीनियम से बनी चीजों और बर्तनों पर कोरोना ड्रॉपलेट्स 8 घंटे तक प्रभावी रह सकती हैं। -किसी गत्ते या कार्डबोर्ड पर कोरोना वायरस 24 घंटे तक जीवित रहता है। जबकि प्लास्टिक से बनी चीजों पर इसकी लाइफ 3 दिन होती है। -स्टेनलेस स्टील पर कोरोना वायरस 2 से 3 दिन तक जीवित रहता है। जबकि संक्रमित व्यक्ति के आस-पास के वातावरण में इसकी उपस्थिति 2 से 3 दिन तक बनी रहती है। -वुडन सरफेस यानी लकड़ी पर और ग्लास यानी कांच पर कोरोना ड्रॉपलेट्स 4 दिन तक प्रभावी रहती हैं।
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