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अमेरिका की एक और कोविड-19 वैक्सीन का आखिरी परीक्षण

July 28, 2020 at 10:02AM
एक तरफ जहां ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई वैक्सीन का भारत में अगस्त के महीने तक 2 से 3 करोड़ की संख्या में उत्पादन करने पर काम चल रहा है। वहीं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में 27 जुलाई को तीस हजार लोगों को एक और वैक्सीन देने की खबर सामने आई है। जानकारी के अनुसार, यह इस वैक्सीन का फाइनल टेस्ट है, जो अलग-अलग संक्रमित जोन में रह रहे लोगों पर किया गया है... इस समय पूरी दुनिया सिर्फ एक ही चीज प्राप्त करना चाहती है और वह है कोरोना की वैक्सीन। ताकि मानवजाति को इस तेजी से फैल रहे संक्रमण से बचाया जा सके। इस बीच विश्वभर में वैज्ञानिक अलग-अलग कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने में लगे हुए हैं। जो वैक्सीन सबसे पहले आएगी और अधिक असरकारी साबित होगी, वे वैक्सीन ही मार्केट में टिक पाएंगी। हालांकि यह फार्मा कंपनीज के बीच एक तरह की प्रतियोगिता है, लेकिन इस समय मानव जाति के लिए यही जरूरी भी है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में जिस वैक्सीन का ट्रायल करीब 30 हजार लोगों पर किया गया है, अभी तक इस वैक्सीन को लेकर किसी तरह दावे नहीं किए जा रहे हैं। इस वैक्सीन का और इसकी डमी डोज का उन लोगों पर क्या असर होगा, जिन्हें यह वैक्सीन लगाई गई है, इस बात की जानकारी हेल्थ एक्सपर्ट्स उन लोगों की बहुत बारीकी से जांच करने के बाद ही बता पाएंगे। ये वैक्सीन उन लोगों को दी गई हैं, जो संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां कोरोना का संक्रमण सबसे अधिक फैला हुआ है। इस वैक्सीन को नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ और अमेरिकी फार्मा कंपनी मॉडर्ना द्वारा विकसित किया गया है। इस वैक्सीन की दो डोज के बाद वैज्ञानिक इस बात का अध्ययन करेंगे कि वॉलंटियर्स के ऊपर इस वैक्सीन का किस तरह का प्रभाव पड़ रहा है। इतनी बड़ी आबादी पर टेस्ट की जरूरत -जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि यह वैक्सीन अपने अंतिम ट्रायल में है। इसके अभी तक के जितने भी परीक्षण हुए हैं, उनमें इस वैक्सीन के नतीजे बहुत अच्छे आए हैं। इस वैक्सीन का कोई भी घातक प्रभाव मनुष्यों पर होने की जानकारी नहीं आई है। -इसके साथ ही अमेरिका की सरकार यह भी चाहती है कि उनके अपने देश में कोविड-19 से सुरक्षा के लिए जिन भी वैक्सीन को विकसित किया जा रहा है, उनका ट्रायल उनके अपने देश में और स्थानीय लोगों पर होना जरूरी है। इसी क्रम में इस वैक्सीन को अंतिम फेज के ट्रायल के लिए 30 हजार वॉलंटियर्स को दिया गया है। क्यों है अपने देश में ट्रायल पर जोर? -आपके मन में यह बात जरूर आ रही होगी कि आखिर अपने देश में ही हर दवा का ट्रायल क्यों चाहता है अमेरिका? तो इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि हम आपको लगातार अपनी खबरों में इस बात की जानकारी दे रहे हैं कि कोरोना का असर किसी व्यक्ति पर उस स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों से भी प्रभावित दिख रहा है। शायद यही वजह है कि कोरोना की लगभग 8 अलग-अलग स्ट्रेन्स विकसित हो चुकी हैं। -इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों पर इस वायरस के अलग-अलग प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। यही कारण है कि कई बार शुरुआती स्तर पर हेल्थ एक्सपर्ट्स के लिए इस बात को पुख्ता कर पाना भी मुश्किल रहा है कि व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ भी है या नहीं। इन सभी तरह की दुविधाओं का अंत इसी तरह से हो सकता है, जब वैक्सीन विकसित करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा जाए कि यह वैक्सीन किस क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को प्राथमिकता देते हुए विकसित की गई है।


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